गाजर के रस का एक गिलास पूर्ण भोजन है। इसके सेवन से रक्त में वृद्धि होती है। गाजर के रस में विटामिन ‘ए’,'बी’, ‘सी’, ‘डी’,'ई’, ‘जी’, और ‘के’ मिलते हैं। गाजर का जूस पीने या कच्ची गाजर खाने से कब्ज की परेशानी खत्म हो जाती है। गाजर में बिटा-केरोटिन नामक औषधीय तत्व होता है, जो कैंसर पर नियंत्रण करने में उपयोगी है| इसके सेवन से इम्यूनिटी सिस्टम तो मजबूत होता ही है, साथ ही आँखों की रोशनी भी बढ़ती है।
किस्में
उष्ण वर्गीय
- पूसा रुधिरा : लाल रंग वाली तथा मध्य सितम्बर से मैदानी क्षेत्रों में बुवाई के लिए उचित।
- पूसा आसिता : काले रंग वाली तथा मैदानी क्षेत्रों में बुवाई के लिए उचित।
- पूसा वृष्टि : लाल रंग वाली तथा अधिक गर्मी व आर्द्रता प्रतिरोधी व मैदानी क्षेत्रों में जुलाई से बुवाई के लिए उपयुक्त ।
शीतोष्ण वर्गीय
- पूसा यमदगिनी : संतरी रंग वाली तथा सितम्बर से बुवाई के लिए उपयुक्त।
- नैंनटीज : संतरी रंग वाली तथा सितम्बर से बुवाई के लिए उपयुक्त।
- पूसा नयन ज्योति :संतरी रंग वाली संकर प्रजाति तथा सितम्बर से बुवाई के लिए उपयुक्त।
बीज की मात्रा : 5 कि.ग्रा./है.
खाद व उर्वरण
- गोबर का खाद : 10-15 टन/है.
- नायट्रोजन : 70 कि.ग्रा./है.
- फॉस्फोरस : 40 कि.ग्रा./है.
- पोटैश : 40 कि.ग्रा./है.
खरपतवार नियंत्रण : खेत की जुलाई के पश्चात् खेत में आधी मात्रा नत्रजन तथा सारा फॉस्फोरस व पोटाश मिला कर 45 ई.सी. के अन्तर पर में तैयार करें और 3.0 सें.मी. लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से स्टाम्प नामक खरपतवारनाशी का छिड़काव करें और हल्की सिंचाई करें या छिड़काव से पहले र्प्याप्त नमी सुनिशिचत करें।
बुवाई का समय : जुलाई से अक्तूबर
बुआई का अन्तराल : बुवाई 45 सें.मी. के अन्तराल पर बनी मेंड़ों पर 2-3 सें.मी. गहराई पर करें और पतली मिट्टी की परत से ढ़ंक दें । अंकुरण के पश्चात् पौधों को विरला कर 8-10 सें.मी. अन्तराल बनाएँ।
सिंचाई व निराई-गुड़ाई : पर्याप्त नमी सुनिशिचत करने के लिए गर्मियों में साप्ताहिक अन्तराल पर तथा सर्दियों में 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें तथा यह स्मरण रखें कि नालियों की आधी मेड़ों तक ही पानी पहुँचे । बुवाई के लगभग एक महीना पश्चात् पौध छंटाई के समय शेष आधी नत्रजन की मात्रा के साथ-साथ मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें जिससे खरपतवार नियंत्रण भी हो जाएगा।
तुड़ाई व उपज : लगभग ढाई से तीन महीनों में गाजर जड़ें विकास के लिए तैयार हो जाती है और औसतन 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर उपज हो जाती है।
बीजोत्पादन : चयनित जड़ों की रोपाई के लिए तैयार करते समय एक तिहाई जड़ के साथ 4-5 सें.मी. पत्ते रखें। खेत को तैयार करते समय उसमें 15-20 टन गोबर की खाद, 40 किल.ग्रा. नत्रजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस और 60 कि.ग्रा. पोटाश मिलाएँ। जड़ों की रोपाई 60 से 45 सें.मी. पर करें और तत्पश्चातत् सिंचाई करें। यह सुनिशिचत करें कि आधार बीज के लिए पृथ्क्करण दूरी 1000 मीटर तथा प्रमाणित बीज के लिए 800 मीटर हो।
कटाई व गहाई : जब दूसरी अम्बल या शीर्ष बीज पक जाएँ तथा उनके बाद में आने वाले शीर्ष भूरे रंग के हो जाएँ तो बीज फसल काट लेनी चाहिए क्योंकि बीज पकने की प्रक्रिया एकमुशत नहीं होती। इसलिए कटाई 3-4 बार करनी पड़ती है। सुखाने के पश्चात् बीज को अलग कर लें और छंटाई करके वायुरोधी स्थान पर उनका भण्डारण करें।
बीज उपज : औसतन 400-500 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज उपज हो जाती है।
प्रमुख रोग एवं नियंत्रण
रोग : सर्कास्पोरा पर्ण अंगमारी (सर्कोस्पोरा कैरोटेई)
लक्षण : इस रोग के लक्षण पत्तियों, पर्णवृन्तों तथा फूल वाले भागो पर दिखाई पड़ते हैं | रोगी पत्तियां मुड़ जाती हैं | पत्ती की सतह तथा पर्णवृन्तों पर बने दागों का आकार अर्धगोलाकार, घूसर, भूरा, या काला होता है | ये दाग पर्णवृन्तों को चारों तरफ से घेर लेते हैं, फलस्वरूप पत्तियां मर जाती है | फूल वाले भाग बीज बनने से पहले ही सिकुड़ जाते हैं |
नियंत्रण : * बीज बोते समय थायरम कवकनाशी (2.5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज) से उपचारित करें |
* खड़ी फसल मे रोग के लक्षण दिखाई पडते ही मैकोजब, 25 कि.ग्रा. कॉपर ओक्सीक्लोराइड या क्लोरोथैलोराइड 3 कि.ग्रा. या (कवच) 2 कि.ग्रा. का एक हजार लिटर पानी में घोल बनाकर, प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करना चाहिए |
रोग : सक्लेरोटीनिया विगलन (स्क्लेरोटीनिया स्क्लेरोशियोरम)
लक्षण : पत्तियों, तनों एवं डण्ठलों पर सूखे धब्बे उत्पन्न होते हैं, रोगी पत्तियाँ पीली होकर झड़ जाती है। कभी-कभी सारा पौधा भी सुखकर नष्ट हो जाता है। रोगी फलों का रोग का लक्षण पहले सूखे दाग के रुप में आता है। फिर कवक गूदे में तेजी से बढ़ती हैं और पूरे फल को सड़ा देती है।
नियंत्रण : फसल लगाने के पूर्व खेत में थायरम 30 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाना
कार्ब्रेन्डाजिम 50 कवकनाशी का कि.ग्रा.एक हज़ार लीटर पानी में घोल बनाएं तथा प्रति हेक्टेयर की दर से 15-20 दिन के अंतराल पर कुल 3-4 छिडकाव करें |
कीट प्रकोप एवं प्रबंधन
गाजर को वीवील (सुसरी) जैसिड व जंग मक्खी नुकसान पहुँचाते हैं।
1. गाजर की सुरसुरी (कैरट वीविल)
इस कीट के सफेद टांग रहित शिशु गाजर के ऊपरी हिस्से में सुरंग बनाकर नुकसान करते हैं। इस कीट की रोकथाम के लिए इनिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 1 मि.लि./3 लिटर या डाइमेथेएट 30 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर या इन्डोसल्फान 35 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर का छिड़काव करें।
2. जंग मक्खी (रस्ट फलाई)
इस कीट के शिशु पौधों की जड़ों में सुरंग बनाते हैं, जिससे पौधे मर भी जाते हैं। इस कीट की रोकथाम के लिए क्लोरपयरीफॉस 20 ई.सी. 2.5 लिटर/हेक्टेयर की दर से हल्की सिंचाई के साथ प्रयोग करें।
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